राहुल के अन्दर धैर्य बिलकुल भी नहीं था। वह एक काम शुरू करता , कुछ दिन उसे करता और फिर उसे बंद कर दूसरा काम शुरू कर देता था इसी तरह कई साल बीत चुके थे और वह अभी तक किसी बिजनेस में सेटल नहीं हो पाया था।
राहुल की इस आदत से उसके माता-पिता बहुत सोच में थे. वह जब भी उससे कोई काम छोड़ने की वजह पूछते तो वह कोई न कोई कारण बता खुद को सही साबित करने की कोशिश करता।
अब राहुल के सुधरने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी कि तभी पता चला कि शहर से कुछ दूर एक आश्रम में बहुत पहुंचे हुए गुरु जी का आगमन हुआ। दूर-दूर से लोग उनका प्रवचन सुनने आने लगे।
एक दिन राहुल के माता-पिता भी उसे लेकर महात्मा जी के पास पहुंचे , उनकी समस्या सुनने के बाद उन्होंने अगले दिन सुबह-सुबह अपने पास बुलाया। गुरु जी उसे एक बागीचे में ले गए और धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए बोले। बेटा तुम्हारा पसंदीदा फल कौन सा है। राहुल बोला ,“आम”.
ठीक है बेटा ! जरा वहां रखे बोरे में से कुछ आम की गुठलियाँ निकालना और उन्हें यहाँ जमीन में गाड़ देना।
राहुल को ये सब बहुत अजीब लग रहा था लेकिन गुरु जी बात मानने के अलावा उसके पास कोई चारा भी नहीं था
उसने जल्दी से कुछ गुठलियाँ उठायीं और फावड़े से जमीन खोद उसमे गाड़ दीं। फिर वे राहुल को लेकर वापस आश्रम में चले गए। करीब आधे घंटे बाद वे राहुल से बोले, “जरा बाहर जा कर देखना उन गुठलियों में से फल निकला की नहीं।”
“अरे! इतनी जल्दी फल कहाँ से निकल आएगा। अभी कुछ ही देर पहले तो हमने गुठलियाँ जमीन में गाड़ी थीं। ”
गुरु जी ने कहा ,“अच्छा, तो रुक जाओ थोड़ी देर बाद जा कर देख लेना!”
कुछ देर बाद उन्होंने राहुल से फिर बाहर जा कर देखने को कहा।
राहुल जानता था कि अभी कुछ भी नहीं हुआ होगा, पर फिर भी गुरु जी के कहने पर वह बागीचे में गया।
लौट कर बोला, “कुछ भी तो नहीं हुआ है गुरू जी ,आप फल की बात कर रहे हैं अभी तो बीज से पौधा भी नहीं निकला है। ”
“लगता है कुछ गड़बड़ है!”, गुरु जी ने आश्चर्य से कहा।
“अच्छा, बेटा ऐसा करो, उन गुठलियों को वहां से निकाल के कहीं और गाड़ दो। ”
राहुल को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन वह दांत पीस कर रह गया। कुछ देर बाद गुरु जी फिर बोले, “राहुल बेटा, जरा बाहर जाकर देखो…इस बार ज़रूर फल निकल गए होंगे। ”
राहुल इस बार भी वही जवाब लेकर लौटा और बोला, “मुझे पता था इस बार भी कुछ नहीं होगा। कुछ फल-वल नहीं निकला। ”
राहुल ने कहा -“क्या अब मैं अपने घर जा सकता हूँ?” “नहीं, नहीं रुको…चलो हम इस बार गुठलियों को ही बदल कर देखते हैं ,क्या पता फल निकल आएं। ”
इस बार राहुल ने अपना धैर्य खो दिया और बोला, “मुझे यकीन नहीं होता कि आपके जैसे नामी गुरु को इतनी छोटी सी बात पता नहीं कि कोई भी बीज लगाने के बाद उससे फल निकलने में समय लगता है ,आपको बीज को खाद-पानी देना पड़ता है , लम्बा इन्तजार करना पड़ता है ,तब कहीं जाकर फल प्राप्त होता है। ”
गुरु जी मुस्कुराए और बोले-
बेटा, यही तो मैं तुम्हे समझाना चाहता था,तुम कोई काम शुरू करते हो ,कुछ दिन मेहनत करते हो ,फिर सोचते हो प्रॉफिट क्यों नहीं आ रहा ,इसके बाद तुम किसी और जगह वही या कोई नया काम शुरू करते हो ,इस बार भी तुम्हे रिजल्ट नहीं मिलता ,फिर तुम सोचते हो कि “यार! ये धंधा ही बेकार है।
एक बात समझ लो जैसे आम की गुठलियाँ तुरंत फल नहीं दे सकतीं, वैसे ही कोई भी कार्य तब तक अपेक्षित फल नहीं दे सकता जब तक तुम उसे पर्याप्त प्रयत्न और समय नहीं देत..
इसलिए इस बार अधीर हो आकर कोई काम बंद करने से पहले आम की इन गुठलियों के बारे में सोच लेना ,कहीं ऐसा तो नहीं कि तुमने उसे पर्याप्त समय ही नहीं दिया।
राहुल अब अपनी गलती समझ चुका था। उसने मेहनत और धैर्य के बल पर जल्द ही एक नया व्यवसाय खड़ा किया और एक कामयाब व्यक्ति बना।
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