प्रेरणादायक हिंदी कहानी - तप का अहंकार
एक बार की बात एक संत (Monk) थे । जो बहुत ही साधारण तरीके से अपना जीवन निर्वाह करते थे ,लेकिन वह बहुत उच्च कोटि के थे । उनके पास लगभग 20 शिष्य रहते थे । उनमें से एक शिष्य उन्हें विशेष प्रिय था वह उनकी हर बात मानता था । और संत (Monk) भी उस शिष्य से बहुत स्नेह रखते थे ।
धीरे-धीरे उस शिष्य की ख्याति भी बढ़ने लगी । और सभी लोग उसकी मिसाल देने लगे की शिष्य हो तो ऐसा । और इन सबसे संत बहुत खुश होते थे ।
एक दिन शिष्य ने संत (Monk) से कहा कि में कुछ समय एकांत में भक्ति करना चाहता हूँ । तो संत (Monk) ने कहा तुम यहाँ रह के भी भक्ति कर सकते हो और जैसा तुम उचित समझों ।
शिष्य ने गुरु से इजाजत ली और जंगल की और एकांत में निकल गया ।
ठीक दस साल बाद वह शिष्य अपने गुरु से वापस मिलने आया । सब को मालूम पड़ने पर भीड़ इक्क्ठा ही गयी । और शिष्य की खूब तारीफ हुई और वह शिष्य की चर्चा सभी जगह चल रही थी । संत भी अपने प्यारे शिष्य से मिलकर बहुत खुश थे ।
वो शिष्य ने कुछ अदभुत कारनामे भी करें तो वह प्रचलित हो गया । सब जगह शिष्य की चर्चा होने लगी ।और दूर- दूर से लोग उससे मिलने आने लगे । इधर संत (Monk) को फिक्र सताने लगी ।
एक दिन गुरु और सभी शिष्यों को पास ही एक गांव में जाना था। रास्ते में एक नदी पड़ती थीं । उस नदी को पार करने के लिए नाव से जाना पड़ता था । गुरु और सभी शिष्य नाव का इंतजार कर रहे थे । और गाँव के भी बहुत सारे लोग थे ।
उस शिष्य ने गुरु से कहा कि हम क्यों ना हम पानी पर चल कर नदी पार कर लें । इस पर गुरु ने कहा - पानी पर कैसे चल सकते है ?
इतने में शिष्य पानी की ओर बढ़ा और पानी पर चलने लगा । और उसने सबको कहा कि तुम भी आ जाओ । पर किसी की हिम्मत नहीं हुई । शिष्य को पानी पर चलता देख कर सब हैरत में पड़ गए । और शिष्य की वाहवाही होने लगी । शिष्य ने पानी पर चलकर नदी पार कर ली । और गुरु और बाकी शिष्य ने नाव में बैठकर नदी को पार किया ।
सभी शिष्यों ने अपने गुरु की चिंता को पढ़ लिया था । जब वापस अपनी कुटिया में सब आ गये तो शिष्यों ने गुरु से कहा की आप के शिष्य ने आपका नाम रोशन कर दिया और आप खुश नजर नहीं आ रहें हैं ।
इतने में वह शिष्य भी वहाँ आ गया और बोला गुरूवर मुझसे कोई गलती हुई हो तो बताइये । गुरु ने कहा -नहीं कोई गलती नही हुई हैं ।
शिष्य बोला या तो मेरी प्रसिद्धि से आपको अच्छी नहीं लगीं हैं ,क्योंकि आपके चेहरे से साफ झलक रहा है, की आप समस्या हैं ।
संत ने कहा - इस बारे में मैं कुछ बोलना नहीं चाहता था पर तुमने यह कहकर मुझे मजबूर कर दिया । संत ने शिष्य से कहा -तुमने जो पानी पर चलकर नदी पार करी तुम्हें बहुत महँगी पड़ी ।
शिष्य बोला कैसे - मैंने तो नदी फ्री में पार कर ली और मुझे इज्जत भी मिली ।
गुरु ने हँस कर कहा - जो चीज मात्र पाँच रुपये में पार की जा सकती थी ,उसके लिए तुमने अपने दस साल की भक्ति उस चीज में लगा दी । तुमने जरा सी सिद्धि के पीछे अभी तक के किये तप-त्याग को बर्बाद कर लिया ।और अपनी भक्ति का सौदा कर लिया ,और ईश्वर के मिलन के सारे रास्ते बंद कर लिए ।
यह सुनकर शिष्य गुरु के चरणों में गिर पड़ा और दहाड़ मारकर रोने लगा । गुरु को उस पर दया आ गयी । उन्होंने उसे अपने पास रख लिया पर वो अपने जीवन का अमूल्य समय और तपस्या को खो चुका था । देखा दोस्तों जरा सी सिद्धि या महान बनने के लालच में उस शिष्य ने अपनी भक्ति को खत्म कर लिया ।
हमेशा अपने गुरु की कही बात पर चलो अपने मन से कुछ मत करो । क्योंकि की गुरु की कही बात पत्थर की लकीर है , उसे ईश्वर भी नहीं काटता ।
0 टिप्पणियाँ