राम रावण युद्ध में भगवान राम विजय हुए , विजय श्री के बाद अयोध्या आकर अपने सभी मंत्रिओं से बात कर रहे थे। तभी हनुमानजी ने युद्ध में हुए कुछ अनुभव को साझां करते हुए प्रभु श्रीराम से कहा कि अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर सीता माँ को मारने के लिए दौड़ा, तब मुझे लगा कि इसकी तलवार छीन कर इसका सिर काट लेना चाहिये।
किन्तु अगले ही क्षण मैंने देखा कि मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देखकर मैं गदगद हो गया। यदि मैं कूद पड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मै न होता तो क्या होता ?
आगे हनुमान जी ने कहा जीवन बहुत बार हम को ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मुझे भी लगता कि यदि मै न होता तो सीताजी को कौन बचाता ? परन्तु उस समय आपने उन्हें बचाया ही नहीं बल्कि बचाने का काम रावण की पत्नी को ही सौंप दिया। तब मै समझ गया कि आप जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं, किसी का कोई महत्व नहीं है।
आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बंदर आया हुआ है और वह लंका जलायेगा तो मै बड़ी चिंता मे पड़ गया कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नही है और त्रिजटा कह रही है तो मै क्या करुं ?
लेकिन जब रावण के सैनिक तलवार लेकर मुझे मारने के लिये दौड़े तो मैंने अपने को बचाने की तनिक भी चेष्टा नहीं की। और जब विभीषण जी ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीतिपूर्ण है, तो मै समझ गया कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया।
आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नही जायेगा पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाये तो मैं गदगद् हो गया कि उस लंका वाली संत त्रिजटा की ही बात सच थी,लेकिन लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता और कहां आग ढूंढता, पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया, जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है।
इन सभी तथ्यों का विवरण देकर हनुमान जी ने भगवान श्री राम की महत्व को बताया। इसलिये हमेशा याद रखें कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी भी यह भ्रम न पालें कि यह सब कुछ मैंने किया हैं।
भगवान राम भी सम्पूर्ण जीवन मर्यादा में रहकर बिताया लेकिन पूर्व में लिए गए अवतारों के कर्म के आधार पर ही उन्हें बनवासी होना पड़ा ,पत्नी वियोग और भी कई कष्टों का सामना करना पड़ा। अतः मनुष्य का कर्म फल भी पूर्व निर्धारित हैं।
इन सभी परिदृश्यों को पढ़कर हमे भी समझना होगा कि नियति द्वारा आपका कर्म और उसका फल भी निर्धारित होता हैं। ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम अयोध्या के नाथ भगवान राम को हमारा प्रणाम हैं।
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