आपने लोगो को अक्सर यह प्रश्न पूछते हुए सुना होगा कि " मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता हैं ? " लोग ईश्वर से प्रार्थना करते हुए भी यह प्रश्न पूछते हैं भगवान मेरे कर्मो में तो खोट नहीं लेकिन फिर भी मेरे साथ यह क्यों हुआ।
ऐसे ही प्रश्न भगवान श्री कृष्ण से महाभारत (Mahabharat) युद्ध के दौरान कर्ण ने पूछे और भगवान श्री कृष्ण ने उनकी सभी शंकाओ का उत्तर दिया , यही संवाद लेख के रूप आगे प्रस्तुत हैं। ..
महाभारत में कर्ण ने श्री कृष्ण (Shree Krishna) से पूछा "मेरी माँ ने मुझे जन्मते ही त्याग दिया, क्या यह मेरा अपराध था कि मेरा जन्म मेरे अन्य भाइयों की तरह नहीं हुआ?
द्रोणाचार्य ने मुझे शिक्षा देने से मना कर दिया था क्योंकि वो मुझे क्षत्रिय नहीं मानते थे , क्या इसमें भी मेरा कसूर था?
परशुराम जी ने मुझे शिक्षा दी साथ यह शाप भी दिया कि मैं अपनी विद्या भूल जाऊंगा इसमें भी मेरा क्या दोष ?
भूलवश एक गौ मेरे तीर के रास्ते मे आकर मर गयी और मुझे गौवध का शाप मिला ?
द्रौपदी के स्वयंवर में मुझे अपमानित किया गया , क्योंकि मुझे किसी राजघराने का कुलीन व्यक्ति नही समझा गया।और भरी सभा में स्वयंवर में सम्मिलित होने से मना किया गया।
यहां तक कि मेरी माता कुंती ने भी मुझे अपना पुत्र होने का सच अपने दूसरे पुत्रों की रक्षा के लिए स्वीकारा।
मुझे जो कुछ मिला दुर्योधन की दया स्वरूप मिला , तो क्या ये गलत है कि मैं दुर्योधन के प्रति अपनी वफादारी रखता हूँ ?
श्री कृष्ण मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले -
कर्ण, मेरा जन्म कैदखाने में हुआ था। मेरे पैदा होने से पहले मेरी मृत्यु मेरा इंतज़ार कर रही थी। और रात में मेरे जन्म के तुरंत बाद मुझे अपने माता-पिता से अलग होना पड़ा।
तुम्हारा बचपन रथों की धमक, घोड़ों की हिनहिनाहट और तीर कमानों के साये में गुज़रा हुआ हैं ।लेकिन लोग मुझे ईश्वर कहते हैं लेकिन फिर भी मैने गायों को चराया और गोबर को उठाया। माखन चोरी कर खाया।
जब मैं चल भी नही पाता था तो मेरे ऊपर प्राणघातक हमले हुए। कोई सेना नही, कोई शिक्षा नहीं , कोई महल नहीं , न ही मैंने कभी कुछ बुरा किया लेकिन फिर भी मेरे मामा ने मुझे अपना सबसे बड़ा शत्रु समझा।
जब तुम सब अपनी वीरता के लिए अपने गुरु व समाज से प्रशंसा पाते थे उस समय मेरे पास शिक्षा भी नही थी। बड़े होने पर मुझे ऋषि सांदीपनि के आश्रम में जाने का अवसर मिला।
तुम्हे अपनी पसंद की लड़की से विवाह का अवसर मिला मुझे तो वो भी नही मिली जो मेरी आत्मा में बसती थी।
मुझे बहुत से विवाह राजनैतिक कारणों से या उन स्त्रियों से करने पड़े जिन्हें मैंने राक्षसों से छुड़ाया था।
जरासंध के प्रकोप के कारण मुझे अपने परिवार को यमुना से ले जाकर सुदूर प्रान्त मे समुद्र के किनारे बसाना पड़ा। दुनिया ने मुझे कायर कहा। मुझे दुनिया रणछोर पुकारती हैं।
यदि दुर्योधन युद्ध जीत जाता तो विजय का श्रेय तुम्हे भी मिलता , लेकिन धर्मराज के युद्ध जीतने का श्रेय अर्जुन को मिलेगा। मुझे कौरवों ने अपनी हार का उत्तरदायी समझेंगे। यही नहीं मैंने सदा धर्म का साथ दिया लेकिन गांधारी बुआ ने मुझे कुल नाश का अभिशाप दिया।
हे कर्ण ! किसी का भी जीवन चुनौतियों से रहित नहीं है। सबके जीवन मे सब कुछ ठीक नही होता हैं । कुछ कमियां अगर दुर्योधन में थी तो कुछ युधिष्टर में भी थीं।
शिक्षा :-
सत्य क्या है और उचित क्या है? ये हम अपनी आत्मा की आवाज़ से स्वयं निर्धारित करते हैं।
इस बात से फर्क नही पड़ता कितनी बार हमारे साथ अन्याय होता है।
इस बात से फर्क नही पड़ता कितनी बार हमारा अपमान होता है।
इस बात से फर्क नही पड़ता कितनी बार हमारे अधिकारों का हनन होता है।
फ़र्क़ सिर्फ इस बात से पड़ता है कि हम उन सबका सामना किस प्रकार करते हैं..!!
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