" Ethics of Chanakya "
( चाणक्य की नैतिकता )
मगध साम्राज्य में आचार्य चाणक्य की बुद्धि और सूझबूझ से हर कोई प्रभावित था। इतने बड़े प्रांत का संचालक होने के बाद भी चाणक्य साधारण Life जीते हुए राजा के महल के पास ही झोपड़ी में रहते थे।
एक बार एक विदेशी यात्री चाणक्य की प्रशंसा सुनकर उनसे मिलने आ पहुंचा। शाम का समय था और चाणक्य कुछ लेखन कार्य कर रहे थे। वहां तेल का एक दीपक जल रहा था।
चाणक्य ने आगंतुक को आसन पर बैठने का अनुरोध किया। फिर वहां जल रहे दीपक को बुझा कर अन्दर गए और दूसरा दीपक को जला कर ले आए। उनके ऐसा करने पर विदेशी व्यक्ति समझ नहीं सका कि जलते दीपक को बुझाकर , बुझे हुए दूसरे दीपक को जलाना, कैसी बुद्धिमानी हो सकती है ?
उसने संकोच करते हुए चाणक्य से पूछा - आप ये क्या कर रहे हैं ? जलते दीपक को बुझाना और बुझे दीपक को जलाना।
आगंतुक ने प्रश्न पूछते हुए बोले कि दिया तो जला था फिर बुझाया ही क्यों और बुझाया तो जलाया ही क्यों ? कृपया इसका रहस्य क्या है?
चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा इतनी देर से मैं अपना निजी कार्य कर रहा था, इसलिए मेरे अर्जित किए धन से खरीदे तेल से यह दीपक जल रहा था। अब आप आए है तो मुझे राज्य कार्य में लगना होगा, इसलिए यह दीपक जलाया है क्योंकि इसमें राजकोष से मिले धन का तेल है। आगंतुक चाणक्य की ईमानदारी देख बड़ा प्रभावित हुआ।
शिक्षा - हम चाहे कितने भी प्रभावशाली क्यों न बन जाएं, ईमानदारी का एक गुण हमेशा काम आता है और इसी से व्यक्ति का पूरा चरित्र बनता है। इस story से आज के भ्रष्टाचारी नेताओं को सीख लेने की आवश्यकता हैं।
Deaf Frog
(बहरा मेंढक )
कुछ मेंढकों की टोली जंगल के रास्ते से जा रही थी, अचानक दो मेंढक एक गहरे गड्ढे में गिर गये। जब दूसरे मेंढकों ने देखा कि गढ्ढा बहुत गहरा है तो ऊपर खड़े सभी मेढक चिल्लाने लगे। तुम दोनों इस गढ्ढे से नहीं निकल सकते, गढ्ढा बहुत गहरा है, तुम दोनों इसमें से निकलने की उम्मीद छोड़ दो। तुम्हारा गढ्ढे से निकलने का प्रयास निरर्थक हैं।
उन दोनों मेढकों ने शायद ऊपर खड़े मेंढकों की बात नहीं सुनी और गड्ढे से निकलने की लिए लगातार वो उछलते रहे। बाहर खड़े मेंढक लगातार कहते रहे। तुम दोनों बेकार में मेहनत कर रहे हो, तुम्हें हार मान लेनी चाहियें, तुम दोनों को हार मान लेनी चाहियें। तुम नहीं निकल सकते।
गड्ढे में गिरे दोनों मेढकों में से एक मेंढक ने ऊपर खड़े मेंढकों की बात सुन ली। और उछलना छोड़ कर वो निराश होकर एक कोने में बैठ गया. दूसरे मेंढक ने प्रयास जारी रखा, वो उछलता रहा जितना वो उछल सकता था।
बाहर खड़े सभी मेंढक लगातार कह रहे थे कि तुम्हें हार मान लेनी चाहियें लेकिन वो मेंढक शायद उनकी बात नहीं सुन पा रहा था और उछलता रहा और काफी कोशिशों के बाद वह दूसरा मेंढक बाहर आ गया। दूसरे मेंढकों ने बाहर आये मेंढक से पूछा - क्या तुमने हमारी बात नहीं सुनी ?
उस मेंढक ने इशारा करके बताया की वो उनकी बात नहीं सुन सकता क्योंकि वो बहरा है इसलिए वो किसी की भी बात नहीं सुन पाया , वो तो यह सोच रहा था कि सभी उसका उत्साह बढ़ा रहे हैं।
शिक्षा :- जब भी हम बोलते हैं उनका प्रभाव लोगों पर पड़ता है, इसलिए हमेशा सकारात्मक बोलें, लोग चाहें कुछ भी कहें आप अपने आप पर पूरा विश्वाश रखें और कड़ी मेहनत, अपने ऊपर विश्वास और सकारात्मक सोच से ही हमें सफलता मिलती है।
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धन्यवाद !!!
1 Comments
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